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इस्मत चुगताई : मुक़द्दस विचारों की लेखिका

इस्मत चुगताई एक प्रगतिशील लेखिका रही हैं, बदायूं ( उत्तर प्रदेश ) के एक संपन्न परिवार में जन्मी इस्मत चुगताई को स्वतंत्रता के प्रति गहरा लगाव था। इस्मत के लिए स्वतंत्रता का अर्थ व्यापक रहा है, स्वतंत्रता के उस

अर्थ में यौन, बौद्धिक, आर्थिक और वैक्तिक आज़ादी शामिल थी। स्वतंत्रता के इस व्यापक अर्थ में हमें मुक़द्दस विचारों की गहरी परतें दिखायीं देती हैं , वे परतें जिन्हें पितृसत्तात्मक समाज मुक़द्दस नहीं बल्कि अपने विरोध में खड़ी हुई क्रांति समझता है।

इस्मत चुगताई की पहली साहित्यिक कृति ‘ज़िद्दी’ १९४० में प्रकाशित हुई थी।

उनके बारे में एक बात जो प्रसिद्ध है वे यह कि उन्होंने अपने जन्म के बाद जो पहला लफ्ज़ बोला वह ‘क्यों’ था और यह ‘क्यों’ उनके समस्त लेखन में देखा जा सकता है। इस्मत चुगताई को राजेंद्र सिंह बेदी , रहीद जहां, उपेन्द्रनाथ अश्क, कृष्ण चंदर, सआदत हसन मंटो जैसे प्रसिद्ध उर्दू कथाकारों में गिना जाता है। इस्मत चुगताई लिखती हैं –“ मेरे मरने के बाद मुझे समुन्दर में फैंक दिया जाए ताकि मछलियों के पेट में कांटा बन जाऊं और किसी बहुत ज़्यादा भाषण देने वाले के गले में फंस कर किसी अच्छे काम का कारण बन सकूं।” इस्मत चुगताई एक ऐसी लेखिका रहीं हैं जो अपनी शर्तों पर जी हैं।


इस्मत चुगताई का कथा-साहित्य स्त्री केन्द्रित रहा है। उनके लेखन में स्त्री की बेचैनी, उसकी घुटन, पीड़ा, लैंगिक भेदभाव, आदि विषयों को देखा जा सकता है। महिला कथाकार इस्मत चुगताई ने लिखा है – “ समाज ने, सिस्टम ने और सरकार ने मेरी लड़कियों को घोंट कर रख दिया है और मेरे लड़कों के ज़हन टेढ़े कर दिए हैं।” उनकी लिखित कहानी ‘लिहाफ़’ में इस्मत जी ने स्त्री के यौनानंद को स्थान दिया है , यौन-तृप्ति का अधिकार हर स्त्री का अधिकार है, वह सिर्फ पुरुष के यौनानंद की वस्तु मात्र नहीं है। यौन तृप्ति विचार को समाज में एक अलग तरीके से देखा जाता है जबकि मनुष्य होने का साक्ष्य यह तृप्ति ही है।‘लिहाफ’ कहानी में इस्मत जी लिखती हैं “न जाने बेगम जान की ज़िन्दगी कहाँ से शुरू होती है? वहां से जब वह पैदा होने की गलती कर चुकी थी, या वहां से जब एक नवाब की बेगम बनकर आयीं आयर छपरखट पर ज़िन्दगी गुज़ारने लगीं।”

उनकी कहानी छुई-मुई एक ऎसी युवती की कहानी है जो अपने वैवाहिक कर्त्तव्य को पूरा करने में असमर्थ है, यहाँ जिस कर्त्तव्य की लेखिका बात कर रही हैं असल में वह कर्त्तव्य नहीं पितृसत्तात्मक सोच हैं, पति का नाम चलाने के लिए उत्तराधिकारी को जन्म देना, इस कहानी में एक स्त्री का धमाकेदार प्रवेश उस कर्त्तव्य बोध का खंडन करते हुए दिखाई देता है, लेखिका का यह खंडन क्रांति नहीं बल्कि उन पवित्र विचारों पर प्रकाश डालता है जो स्त्री पक्ष में खड़े हुए हैं।


भावनात्मक बंजरपन की देहलीज़ को इस्मत चुगताई अपनी पवित्र लेखनी द्वारा भिगोती नज़र आती हैं। ‘टेढ़ी लकीर’ इस्मत जी का आत्मकथात्मक उपन्यास है जिसमें युवती के उतार-चढ़ाव की को उन्होंने प्रस्तुत किया है।इस्मत चुगताई ने अपने एक लेख में लिखा था “मैं मर्द और औरत को अलग नहीं मानती , बचपन में भी मेरा दिल वे सारी चीज़ें करना चाहता था जो मेरे भाई करते थे।” इस्मत चुगताई ने स्त्री के अस्तित्व में उसके जीवन के सारे क्षणों को समेटा हुआ है।



“मैं आजकल की लड़कियों को देखती हूँ और जो भी मुझसे मिलने आती हैं, मैं कहती हूँ , चूल्हे में डालो शादी, इंडिपेंडेंट बनो पहले।”

2 comentários


Chetan Gochar
Chetan Gochar
23 de mar. de 2022

वाह💐

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Asmita Upadhyay
Asmita Upadhyay
22 de mar. de 2022

Gazab likha hai!

This is the feminism we seek today.

💜 Power to you girl 💜

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